लेखनी कहानी -01-Aug-2023 वो हमसफ़र था, एपिसोड 53
आज, हंशल और हनिश्का की सुहागरात थी, हनिश्का कमरे में बैठी हंशल का इंतजार कर रही थी,,, थोड़ी देर बाद हंशल वहाँ आ जाता है,,, उसके कदमो की आहट से हनिश्का के दिल की धड़कन बड़ रही थी,,, थोड़ी देर बाद वो उसके सामने आकर बैठ जाता है,,,, उसका घूंघट उठा कर यूं ही उसे देखता रहता है,,, चेहरे पर मंद मंद मुस्कान सजाये।
"क्या देख रहे हो? कुछ बोलो भी " हनिश्का ने शरमाते हुए कहा।
"क्या कहू? मुझे तो सब ख्वाब सा लग रहा है,, मानो मैं कोई ख्वाब देख रहा हूँ,,, तुम यहां लाल जोड़े में मेरे कमरे में " हंशल कुछ और कहता तब ही हनिश्का ने उसके नोच लिया हंशल की चीख निकल गयी
"आ गया यकीन,, ये कोई ख्वाब नही है,,, हकीकत है,,, मुझे भी पहले यही लगा था इसलिए मैंने खुद को चीटी काट कर देख लिया था " हनिश्का ने हस्ते हुए कहा।
"इतनी जोर से कौन चींटी कांटता है,,, तुम भी ना,,, अच्छा ये देखो तुम्हारे लिया क्या लाया हूँ,,, अपनी आँखे बंद करो " हंशल ने अपना हाथ अपनी जेब में डालते हुए हनिश्का से आँख बंद करने का कहा।
"ठीक है,,, करती हूँ,,," हनिश्का ने कहा, आँख बंद करते हुए।
फिर उसे अपनी गर्दन पर कुछ महसूस हुआ,,, वो एक लॉकेट जैसा था,,, हनिश्का ने आँख खोली और ज़ब उस लॉकेट को देख तो बहुत ख़ुश हुयी,,, उस पर उन दोनों का नाम लिखा हुआ था,, एक खूबसूरत सा छोटा सा दिल बना हुआ था और उसके अंदर उन दोनों का नाम लिखा हुआ था
"वाओ,,, कितना प्यारा लॉकेट है,,," हनिश्का ने कहा।
"तुम्हे पसंद आया,,, तुम्हारी मूंह दिखाई है,,, जानती हो,,,, इस दिन का मैंने बहुत बेसब्री से इंतजार किया था,,, कि एक दिन ऐसा हो कि तुम मेरे सामने बैठी हो,,, और ये लॉकेट मैं खुद तुम्हे पहनाऊ,,, ये लॉकेट मैंने अपनी पॉकेट मनी बचा कर खरीदा था,,, मुझे बस इसे तुम्हे आज के दिन देना था " हंशल ने कहा हनिश्का की तरफ देखते हुए।
"हनिश्का निशब्द थी,,, वो वहाँ से उठी और सामने रखे एक बेग से कुछ निकाल कर हंशल के सामने ला कर बोली " ये देखो तुम्हारी दी अंगूठी,, जिस तरह तुम्हे विश्वास था कि ये लॉकेट एक दिन तुम मुझे पहनाओगे उसी तरह मुझे भी भरोसा था कि एक दिन ऐसा आएगा कि मैं इस अंगूठी को पहन कर सबके सामने जा पाऊँगी,,, इसे उतारने से पहले मैंने खुद से वायदा कर लिया था,,,इस अंगूठी की जगह इस ऊँगली में ही है,,, इसके अलावा कोई और अंगूठी या किसी और के नाम की अंगूठी पहनने से पहले मैं खुद को मार लूंगी लेकिन इस ऊँगली में किसी और की अंगूठी नही पहनुंगी देखो आज वो दिन आ गया,,, अब फ़क्र के साथ इस अंगूठी को पहनूंगी और वायदा करती हूँ,,, मरते दम तक इस अंगूठी को नही उतारूँगी,,, ये अंगूठी नही बल्कि हमारे प्यार की निशानी है " हनिश्का ने कहा
हंशल उसकी बातें सुन भावुक सा हो गया था,,, उसने उसे गले से लगा लिया उसके बाद हंशल और हनिश्का ने और भी बातें की और पता ही नही चला कब बातें करते करते उनकी आँख लग गयी,, जहाँ एक नई जिंदगी शुरू हो रही थी वही दूसरी तरफ आँचल की जिंदगी ख़त्म होने के कगार पर थी
लेकिन फिर भी डॉक्टरों की मेहनत रंग लायी,,, उसकी जान तो बच गयी थी लेकिन अभी भी 24 घंटे उसकी जिंदगी के सबसे अहम होने वाले थे,,, उसके दिमाग़ में काफ़ी गहरी चोट आयी थी जिस वजह से डॉक्टर्स ने वार्निंग दी थी कि अगर 24 घंटे तक उसे होश नही आया तब वो कोमा में जा सकती है
सीमा जी और अधिराज जी कि मानो जान ही निकल गयी थी,, ये सब सुन कर लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत से काम लिया
अगला दिन,,, हंशल और हनिश्का अपने कमरे में थे, तब ही दरवाज़े पर किसी की दस्तक होती है,,, हनिश्का की आँख खुल जाती है,,, वो हंशल को उठाती है,,, वो आवाज़ उसकी बहन काजल की थी जो की उन दोनों को उठाने आयी थी,,, ताकि नहा धोकर आकर नाश्ता कर ले,, और तो और उसे अपनी भाभी से भी मिलना था,,, हनिश्का तो दरवाज़ा खोलने जा रही थी लेकिन हंशल ने ही मना कर दिया,, उसे थोड़ा अजीब लगा रहा था,,, इस तरह तो उसने उसे जाने का कहा काजल वहाँ से जा चुकी थी
हनिश्का, अपने बिस्तर से उठ कर नीचे जा ख़डी हुई थी,,, लेकिन तब ही हंशल ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी और खींच लिया, हंशल को ना जाने कब से इस पल का इंतजार था,,, दोनों आँखों में आँखे डाले एक दुसरे को देख रहे थे,, हनिश्का की सांसे बहुत तेज चल रही थी,,, दोनों ही एक दुसरे में खो से गए थे
लेकिन तब ही हनिश्का,,, हंशल के हाथ पर नोच लेती है,,, और अपना हाथ छुड़ा कर वहाँ से आगे बढ़ती है हस्ते हुए,,, हंशल को इस तरह अचानक हुए प्रहार की उम्मीद नही थी,,, वो जोर से चीखा,,, मानो उसे काफ़ी जोर से लगा हो,,, वो हनिश्का के पीछे दौड़ा,,, लेकिन ज़ब तक हनिश्का वाशरूम में चली गयी थी
"बाहर तो आओगी,, फिर देखना तुमसे बदला ले लूँगा " हंशल ने कहा।
देखा जाएगा,,, हनिश्का ने वाशरूम से ही कहा,,, उसके बाद हनिश्का ने खुद को सामने लगे आयने में देखा,,, उसके चहरे पर एक अलग ही तरह की चमक थी,,, वो आयने में खुद को देख मुस्कुराती है,, और फिर नहा धोकर बाहर आ जाती है,
हंशल,,, बिस्तर पर बैठा उसके आने का इंतजार कर रहा था,,, उसे गीले बालों में देख हंशल उसे देखता ही रहता है,,, वो बहुत ज्यादा प्यारी लग रही थी,,, मानो अभी अभी ओस की बूंदो से नहायी कोई कली खिली हो,, वो तो मन्त्रमुग्ध सा हो गया था,,, धीरे धीरे वो हनिश्का के पास आता है,,, उसे अपनी बाहों में भर लेता है,,, लेकिन हनिश्का अपने गीले बाल उसके चेहरे पर झाड कर वहाँ से आगे बड़ जाती है,,, हंशल मुस्कुराता हुआ,, बस उसे ही देखता हुआ वाशरूम में चला जाता है,,,
हनिश्का चहरे पर मुस्कान सजाये,,, खुद को संवारती है,,, मांग में सिन्दूर भरती है,,, मंगलसूत्र पहनती है,,, माथे पर बिंदी लगाती है,,, खुद को सुहागन बना देख वो बहुत खुश होती है,,, उसके बाद वो कमरे को संवारती है,,, वहाँ रखी हर एक चीज को बहुत प्यार और स्नेह से रखती है,,, मानो उसे वहाँ रखी हर एक चीज से प्यार हो,,, सामने रखी हंशल की तस्वीर को देखती है,,, इतनी देर में हंशल भी बाहर आ जाता है,,, हनिश्का को इस तरह सजा सवरा देख वो एक बार फिर उसकी सुंदरता पर मन्त्र मुग्ध हो कर उसकी और बढ़ता है,,, लेकिन तब ही दरवाज़े पर दोबारा दस्तक होती है,,, और इस बार काजल नही बल्कि उसके साथ उसकी माँ भी थी
बाहर से आयी माँ की आवाज़ सुन,,, हंशल ने तुरंत दरवाज़ा खोल दिया,,, सुजाता जी और काजल कमरे में आते है,,, कमरा फूलों से महक रहा था,,, हनिश्का उन्हें नमस्ते कर,,, जल्दी से पैर छू लेती है,,, सुजाता जी उसे आशीर्वाद देते हुए कहती है " जुग,, जुग जियो मेरी बच्ची,,, तुम्हारे आते ही इस कमरे में रौनक आ गयी,,, वरना तो इस कमरे में सारा समान यूं ही बिखरा रहता था लेकिन तुमने देखो पूरे कमरे को कितने अच्छे से सजा दिया,,, सच कहते है लोग , औरत से ही घर बनता है,,,उसके दम से ही घर में रौनक होती है,,, "
"अच्छा माँ,,, बहु के आते ही बेटे को भूल गयी,,, क्या मैं कमरा साफ नही रखता था,,, जाओ माँ तुम तो बहु के आते ही बेटे का साथ छोड़ बैठी?" हंशल ने कहा।
"अरे! नही ऐसी बात नही है,,, तू भी कमरे को साफ रखता था,,, लेकिन देख बहु के हाथों से रखी सारी चीज़े कितनी अच्छी और व्यवस्थित ढंग से रखी हुई है,,बस यही फर्क होता है आदमी के द्वारा किये गए घर के काम में और स्त्री के द्वारा किये गए घर के काम में,,, वो हर एक चीज को बहुत स्नेह से सजो कर रखती है,,, अरे मैं भी क्या बातें लेकर बैठ गयी,,, जल्दी आओ तुम लोग नीचे,, नाश्ते की मेज पर तुम्हारे पापा इंतजार कर रहे है,,,कई बार पूछ चुके है तुम लोगो का,," सुजाता जी ने कहा।
"ठीक है माँ,,, हम अभी आते है,,, आप चलिए " हंशल ने कहा।
"रुकिए,, माँ,, मैं आपके साथ चलती हूँ,,, मैं तैयार हूँ,,," हनिश्का ने कहा,, सुजाता जी को रोकते हुए।
सुजाता जी को उसका माँ कहना बहुत अच्छा लगा,,, वो पलट कर उसकी तरफ देख कर बोली " कोई बात नही बेटा,,, तुम दोनों साथ में आओ,,, साथ में आते हुए तुम दोनों ज्यादा अच्छे लगोगे "
". हाँ,, भाभी माँ सही कह रही है,,, आप भाई के साथ ही आइयेगा,,, फिर मैं आप दोनों की वीडियो और तस्वीर बनाउंगी,, और फिर उसे इंस्टाग्राम पर पोस्ट करुँगी और हेशटैग भी दूँगी,, भैया भाभी,," काजल ने कहा।
"हाँ,, हाँ तू ये जरूर करना,,, कोई जरूरत नही है,,, इस तरह तस्वीरे कही डालने की,,, भगवान न करे कही मेरे बहु बेटे को किसी की नजर लग गयी तो,,, क्या पता कौन किस नजर से देख रहा है,,," सुजाता जी ने कहा।
"ओह माँ,,, तुम भी ना,,, ठीक ही नही डालूंगी,,, लेकिन हाँ अपने पास तो रख ही सकती हूँ,,," काजल ने कहा हस्ते हुए।
सब लोग हस रहे थे,,, उसके बाद वो लोग वहाँ से चले गए।
"बस यही है मेरी दुनिया,, मेरी माँ,, मेरे पापा,,, मेरी बहन और तुम,,, जिसे मैं किसी भी कीमत पर खोना नही चाहता,,, हनिश्का शायद तुम्हे हमारे घर में एडजस्ट होने में थोड़ी दिक्क़त हो कभी कभी किसी चीज को लेकर शायद तुम्हे इंतजार करना पड़ जाए क्यूंकि जिस तरह तुम मेरी जिम्मेदारी हो उसी तरह मेरे माता पिता और मेरी बहन भी मेरी जिम्मेदारी है,,, शायद कभी कभी उन्ही जिम्मेदारियों को निभाने के चककर में शायद तुमसे किये किसी वायदे को पूरा करने में समय लग जाए तो प्लीज मुझे माफ कर देना,,, मैं जानता हूँ तुम मुझे समझोगी,,, अगर कभी भी ऐसा वैसा कुछ होगा " हंशल ने हनिश्का की तरफ देख कर कहा।
हनिश्का ने अपना हाथ उसके हाथ में रख कर कहा " तुम्हे परेशान होने की जरूरत नही है,,, परिवार और उसकी एहमियत क्या होती है,,इस बात को मुझसे ज्यादा और कौन समझ सकता है,,, और परिवार को बनाने के लिए थोड़ा बहुत तो अपनी जरूरतो का त्याग करना ही पड़ता है,,, थोड़ा बहुत एडजस्टमेंट तो सब ही को करना पड़ता है,,, लेकिन तुम भी मुझसे वायदा करो,,, कि चाहे कुछ भी हो जाए तुम मुझसे अपनी हर परेशानी हर बात साँझा करोगे,,, हमारे बीच पति पत्नि से पहले एक दोस्ती का रिश्ता होगा जिसमे तुम मुझे अपना हर सुख दुख बताओगे और मैं अपना,,, फिर चाहे वो कितनी बड़ी परेशानी क्यूँ ना हो अगर हम उसे एक साथ बाटेंगे तो वो जरूर हल हो जाएगी इस बात पर हमें यकीन रखना, होगा,, हर परेशानी अपने तक ही सीमित नही रखनी होगी,,, हमें अपने इस सफऱ को एक एक दुसरे का हमसफ़र, हमराज बन कर गुजारना होगा,, ताकि जिंदगी में आने वाले हर पड़ाव को अच्छे से पार कर सके और जवानी से बुढ़ापे तक का आनंद ले सके,,, "
हंशल उसकी बात सुन उसे गले लगाते हुए कहता है " मैं वायदा करता हूँ,,,मैं अपनी हर ख़ुशी और परेशानी तुम्हारे साथ साँझा किया करूँगा,,, ताकि उस परेशानी को हम दोनों मिलकर दूर कर सके "
दोनों काफ़ी खुश थे,,, और फिर थोड़ी देर बाद नाश्ते के लिए बाहर आ जाते है,, काजल अपने मोबाइल से तस्वीरे और वीडियोस बनाती है,,, उसके बाद सब लोग नाश्ता करते है,,, सब लोग बेहद खुश थे,,,
जगजीवन जी,,, जो की आँचल के बारे में बताना तो चाह रहे थे,,, क्यूंकि अधिराज जी का कल फंक्शन से इस तरह जाना उन्हें अजीब लगा इसलिए उन्होंने फ़ोन कर के पूछा तब पता चला की आँचल का एक्सीडेंट हो गया है
लेकिन आज ख़ुशी का मौका था,, सब लोग बेहद खुश थे,,, नई बहु घर आयी थी,, इसलिए उन्होंने उस समय वो दुख भरी खबर सुनाना सही नही समझा
ये तो था हंशल के घर का हाल,,, लेकिन वही दूसरी तरफ अभीर जिसने पूरी रात क्लब में गुजारी थी,,, हंशल और हनिश्का की शादी हो जाने के गम में,,, अभिनव भी उसी के साथ था,,,वो उसे घर ले जाना चाह रहा था,,, लेकिन वो घर नही जाना चाहता था,,, वो आज अपने दोस्त से दोस्ती का रिश्ता टूट जाने का जश्न मना रहा था,,,, जो कल तक उसका दोस्त था अब दुश्मन बन गया था,,अभिनव जो चाहता था वो हो गया था,, भले ही उसने हंशल को मार कर खुद के हाथ खून से नही रंगे, लेकिन अभिनव उसे इस तरह से हंशल के खिलाफ इस्तेमाल करेगा कि वो खुद भी इतना घायल हो जाएगा कि ठीक से खड़ा भी नही हो पायेगा ,इसलिए वो ज़ब पूरी तरह नशे में धुत हो गया था तब अभिनव उसे घर ले आया था और वो अभी भी सो रहा था
मारथा को उसकी चिंता हो रही थी,,, क्यूंकि अभीर ऐसा नही था जैसा वो बनता जा रहा था,, इसी चिंता को मन में लिए वो अभीर के कमरे में जाती है जहाँ वो सो रहा था,,, उसे जगा कर उसके बारे में जानना चाहती है,,, कि उसे क्या हो गया है,? वो कॉलेज के बाद से इतना क्यूँ बदल गया है?
क्या मारथा अपने सवालों के जवाब जान पायेगी,,,? जानने के लिए पढ़ते रहिये